हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, केंद्रीय धार्मिक सवालों के उत्तर देने वाले केंद्र ने "हज़रत उम्मुल बनीन (स) की कर्बला में अनुपस्थिति के कारण" पर एक सवाल-जवाब प्रकाशित किया है, जिसे हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं:
प्रश्न:
सलाम और शुक्रिया, क्यों हज़रत उम्मुल बनीनी (स) कर्बला में नहीं थीं, जबकि हज़रत ज़ैनब (स) और हज़रत रबाब (स) अपने छह महीने के बच्चे के साथ कर्बला में थीं, जबकि हज़रत उम्मुल-बनीन (स) भी मदीना में थीं? क्यों उन्होंने इमाम हुसैन (अ) का साथ नहीं दिया?
उत्तर:
इमाम हुसैन (अ) के साथियों का कर्बला में होना कई कारणों पर निर्भर था:
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शारीरिक और मानसिक ताकत: कर्बला तक का सफर बहुत कठिन था, और इसके लिए शारीरिक और मानसिक ताकत की जरूरत थी। हज़रत उम्मुल-बनीन (स) की शारीरिक स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं है, इसलिए हो सकता है कि उनकी शारीरिक हालत कर्बला जाने के लिए उपयुक्त न रही हो।
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हज़रत उम्मुल-बनीन (स) की इच्छा और संतुष्टि: हालांकि हज़रत उम्मुल-बनीन (स) मदीना में थीं, लेकिन संभव है कि इमाम हुसैन (अ) ने उन्हें कर्बला न लेजाने का निर्णय लिया हो। इमाम हुसैन (अ) अपने फैसले मसलहत और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर लेते थे।
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इमाम हुसैन (अ) का निर्णय: इमाम हुसैन (अ) ने कर्बला में अपने साथियों का चयन करते समय समाज की जरूरतों और क़याम के उद्देश्यों को ध्यान में रखा। हो सकता है कि इमाम हुसैन (अ) ने हज़रत उम्मुल-बनीन (स) को कर्बला न भेजने का निर्णय लिया हो, या फिर किसी और वजह से उन्हें यह निर्णय लेना पड़ा हो।
इसके विपरीत, हज़रत ज़ैनब (स) का कर्बला में होना इमाम हुसैन (अ) के फैसले और क़याम के संदेश को फैलाने के लिए अहम था। हज़रत ज़ैनब (स) ने कर्बला के बाद उस घटनाक्रम का संदेश लोगों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अगर वह कर्बला में नहीं होतीं, तो इमाम हुसैन (अ) का क़याम अधूरा रह जाता।
इसके अलावा, हज़रत रबाब (स), जो इमाम हुसैन (अ) की पत्नी थीं, कर्बला में अपने छह महीने के बच्चे के साथ थीं। यह इमाम हुसैन (अ) की मसलहत और निकटता की वजह से था।
निष्कर्ष:
कर्बला में महिलाओं का उपस्थित होना कभी भी वाजिब नहीं था। इमाम हुसैन (अ) ने अपने साथियों का चयन मसलहत और जरूरतों के आधार पर किया। कर्बला जाने वाले लोग या तो शहीदों की पत्नियाँ थीं या वे व्यक्ति थे जिनकी वहाँ मौजूदगी क़याम के उद्देश्यों के लिए जरूरी थी।
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